21– 🌸 और वह? 🌸

21– 🌸 और वह ? 🌸
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कोई कहता उसे आम आदमी
कोई कहता सडक का आदमी
और कोई तो मज़लूम भी
जो हो हैं सब मजबूर ही ।
ना शक्ति रही है उनमें इतनी
ना बहुत ज़ोर है बाज़ूओं में
ना जेबें भरी हैं उसकी सिक्कों से
बस मन रहता है हमेशा भारी —
मेहनत है सिर्फ उसकी जमा पूंजी
बँगले का नहीं देखता कभी सपना
एक छत एक छाँव का बने घोंसला
हाथ -पैरों पर रखता है भरोसा
दो जून रोटी मिले यही आशा ,
आँखें मीँचे चलता जाता ,
न कभी देखे आगा पीछा,
बहुत सरल जीवन है इसका
छल-प्रपंच से रहता दूर हमेशा
क्या सच में वो है लाचार?
नहीं कोई पहचान न आसरा?
जो करे न कोई उनकी बात
न सुने उसकी कोई फरियाद
बस पाँच साल में ही वो याद आये
देखो!नेता कैसे कैसे उसे लुभाएँ
हर बार एक ही बात समझाये।
देकर वोट अपना मुझे जितायें
लोकतंत्र के नाम पर वोट का हक़ है
पर खरीद- फरोख्त में बिक जाता है
है उसका ये हक़ अनमोल
इसी मुगालते में वह जीता रहता
“आम आदमी “का सरताज़ पहने
एक दिन का राजा बन जाता
आँख -मुहँ बँद कर खड़ा वह
आम आदमी है हारा आदमी।
लेकिन जिस दिन वह मुहँ खोलेगा
जीने के अपने हक़ माँगेगा
नई राह नई दिशा देखेगा
लोक राज अधिकार पायेगा। =======================
महिमा शुक्ला। इंदौर