मुक्तक
तेरी गलियों से गुज़रते तेरे मकाँ तक पहुँचे,
तेरे धड़कन की आवाज़ सुन यहाँ तक पहुँचे ,
चाँद को छू के चले आए हैं विज्ञान के पंख,
ज़रा गौर से देखो इंसान कहाँ तक पहुँचे ।
तेरी गलियों से गुज़रते तेरे मकाँ तक पहुँचे,
तेरे धड़कन की आवाज़ सुन यहाँ तक पहुँचे ,
चाँद को छू के चले आए हैं विज्ञान के पंख,
ज़रा गौर से देखो इंसान कहाँ तक पहुँचे ।