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28 Dec 2017 · 1 min read

“गीत, राधेश्यामी छंद”

“गीत, राधेश्यामी छंद”

माना की तुम बहुत बली हो, उड़े है धुँआ अंगार नहीं
नौ मन लादे बरछी भाला, वीरों का यह श्रृंगार नहीं
एक धनुष थी वाण एक था, वह अर्जुन का गांडीव था
परछाई से लिया निशाना, रणधीरा अति कुशल वीर था।।

तुलना करता रहा दुशासन, बचपन कहाँ भान होता है
बलशाली तो हुआ धुरंधर, यौवन सनक शान होता है।
विलख पड़ा धृतराष्ट्र आँख से, नामी प्रखर कान होता है
गांधारी की विपदा भारी, कैसे सहज प्रान होता है।।

बात समझ में आ जाती तो, नहीं महाभारत होता जी
रिश्तें नहीं तिराण उगलते, यदि वीरों का बल होता जी।
सकुनी का पासा तासा भी, रणभूमी में क्या होता जी
भीष्म गुरु अपनी सुनते तो, नारद नहीं जमीं होता जी।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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