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25 Feb 2017 · 1 min read

चंद्रमुखी : मत्तग्यन्द सवैया

जोगिन एक मिली जिसने चित,
चैन चुराय लिया चुप मेरा ।

नैन बसी वह नित्य सतावत,
सोवत जागत डारिहु घेरा ।

धाम कहाँ उसका नहिं जानत,
ग्राम, पुरा, बृज माहिंउ हेरा ।

कौन उपाय करूँ जिससे अब,
मित्र करे वह आकर भेरा ।।

नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
+91 84 4008-4006

Language: Hindi
1 Like · 391 Views
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