मंजरी को चाहता हूँ ( गीत ) पोस्ट -२३जितेंद्रकमलआनंद( पोस्ट१६५)
माधुरी को चाहता हूँ ( गीत )
तुम हिरन सम मरुथलों में दौडना चाहूँ करूँ क्या
ननिजह्लदय ,गोविंद की मैं माधुरी क चाहता हू
रंग विरंगी लट्टुओं की जगमगाती वह रँगीली
रौशनी अच्छी नहीं है, जो करे अंधा किसी को
आदमी अच्छा नहींह है जो दौ ओ दौड में अंधा हुआ है
जो सताता है रुलाता जो भला चाहे उसी को
तुम भले ही साथ चाहो ,,सोनपरियों का रँगीला
सांध्य बेला में विहँसती ईंगुरी को चाहता हूँ।।
— िि
जितेंद्रकमल आनंद
रामपुर ( उ प्र )