घनाक्षरी:: मेरे लिए कुछ भी न दूर और : जितेंद्र आनंद( पो १६३)
मेरे लिए कुछ भी न दूर और समीप ही,
मेरा प्रतिबिम्ब ही तो होता अवलोकित है ।
दृष्टि में न भेद|वाह्य, आंतरिक जगत् में,
सर्वत्र ही समदर्शी मेरी स्थिति शोभित है।
मेरा चित्त शांत हुआ, मिला परमानंद भी।
आप से जो प्राप्त हुआ, ज्ञान द्वारा संचित है।
गुरुदेव! असीम हूँ मैं सीमित रहा नहीं ,
व्याप्ति अनंत में , यह सद्ज्ञान अर्जित है।।५/९४!!
—- जितेंद्रकमल आनंद
२-१२-१६ सॉई विहार कालोनी , रामपुर(उ प्र)