यह ब्रह्मही है आत्मा ,आत्माही है: जितेन्द्र कमल आनंद ( पो १४२)
घनाक्षरी
———– यह ब्रह्म ही है आक्मा, आत्मा ही ब्रह्म अत:
ब्रह्माण्डीय चकुर्दिक विस्तार आत्मा का है ।
यह आत्मा सम्पूर्ण और आत्मा ही सत्य , वत्स
सुखकर अलौकिक संसार आत्मा का है।
भाव क्या अभाव कुछ है नहीं आत्मा के लिए , यह तो है अमर न संहार आत्मा का है ।
करते ईश्वरीय अनुभूतियाँ इसी से तो ,
यह देह मानव , उपहार| आत्मा का है ।।५/७७!!
—– जितेंद्रकमलआनंद
११-११-१६ रामपुर – २४४९०१