फिर एक ग़ज़ल — जितेंद्रकमलआनंद ( पोस्ट १४०)
गॉव के पोखर में खिल उठे कमल
सॉसों में पल गई फिर एक ग़ज़ल
विहंगों का कलरव गिरता तुषार
पत्तों पे ढल गई फिर एक ग़ज़ल
वट तले मंदिर में ढोलक के साथ
छंदों में चल गई फिर एक ग़ज़ल
सर्पीली लहराती कच्ची पथ – डोर
पथिको कों छ ल| गई फिर एक ग़ज़ल
महक उठी अमराई फूलों के साथ
भँवरों को फल गई फिर एक ग़ज़ल ।।
— — जितेंद्रकमल आनंद १०-११-१६