स्वप्नवत् हो भ्रांतियॉ जिसके :: जितेन्द्र कमल आनंद ( पोस्ट१३९)
स्वप्नवत हो भ्रांतियॉ , जिसके बोधोदय से,
उस सुखरूपी शॉत, तेजस्वी को नमन हैं ।
वासनाओं में जो नहीं होता है संलिप्त कभी ,
उस महामना योगी, यशस्वी को नमन हैं ।
रहता है जो आत्म- बोध से प्लावित प्रशांत,
उस वीतरागी श्रेष्ठ ओजस्वी को नमन है ।
आत्मस्वरूप से जो है निरपेक्ष – निरंजन ,
उस महायोगी धीर ,मनस्वी को नमन हैं ।।१ / १८/ ७६!!
घनाक्षरी
———– जितेंद्रकमल आनंद
सॉई बिहार , रामपुर ( उत्तर प्रदेश)
दिनॉक : ९-११-१६