मुक्तक: हर सुबह एक नई आस लिए होती है:- जितेंद्रकमलआनंद( १३२)
मुक्तक ::—
——++ हर सुबह एक नई आस लिए होती है
दोपहर एक अमिट प्यास लिए होती है
डूब जाता हूँ याद की तन्हाईयों में —
चॉदनी रात जब मधुमास लिए होती है ।।
—– जितेंद्रकमलआनंद रामपुर —- दिनॉक: ६-११-१६