जीवितरहने की स्पृहा ही तेरा है बंधन:: जितेन्द्र कमल आनंद ( पोस्ट१०९)
राजयोगमहागीता:: घनाक्षरी
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जीवित रहने की स्पृहा ही तेरा है बंधन ,
मुक्त होना बंधनों से सबको अपेक्षित ।
कामी, क्रोधी , क्रूर होते अहंकारी मानव जो ,
ये ही रहते आये हैं सबसे उपेक्षित| ,।
अहा ! मेरे क्षेत्रमें ये अंकुरित होते बीज ।
होते फिर पल्लवित , पुष्पित व फलित ।
फिर बीज बन।जाते , खेल लय – विलय का ,
संचर , प्रति संचर सिद्धांत सापेक्षित ।।द्वितीय अ / २०!!
—— जितेंद्रकमलआनंदजितेंद्रकमलआनंद
रामपुर ( उ प्र)