Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Oct 2016 · 5 min read

‘ विरोधरस ‘—12. || विरोध-रस के आश्रयगत संचारी भाव || +रमेशराज

विरोध-रस के आश्रय अर्थात् जिनमें रस की निष्पत्ति होती है, समाज के वे दबे-कुचले-सताये-कमजोर और असहाय लोग होते हैं जो यथार्थवादी काव्य या उसके एक रूप तेवरी के सृजन का आधार बनते हैं। तेवरी इन मानसिक और शारीरिक रूप से पीडि़त लोगों के घावों पर मरहम लगाती है, उन्हें क्रांति के लिए उकसाती है। तेवरी-काव्य के ये आश्रय, आलंबन अर्थात् स्वार्थी, शोषक लोगों के अत्याचारों के शिकार सीधे-सच्चे व मेहनतकश लोग होते हैं। इनके मन में स्थायी भाव आक्रोश तीक्ष्ण अम्ल-सा उपस्थित रहता है और अनेक संचारी भाव, घाव के समान पीड़ादायी बन जाते हैं, जो निम्न प्रकार पहचाने जा सकते हैं-
[ रमेशराज की सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘ विरोध-रस ‘ से ]

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ दुःख ‘
—————————————————————–
विरोध-रस के आश्रयों में दुःख का समावेश बार-बार होता है। कहीं उसे भूखे बच्चों की भूख ने दुःखी कर रखा होता है तो कहीं उनके मन में साहूकार का कर्ज न लौटा पाने के कारण पनप रही चिंता होती है। कहीं नौकरी नहीं मिल पाने के कारण तनाव है तो कहीं जमीन-जायदाद को जबरन हड़पने की व्यथा-
जो भी मुखड़े दिखाई देते हैं, उखड़े-उखड़े दिखायी देते हैं।
-गिरिमोहन गुरु, ‘कबीर-जिन्दा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 19
लोगों को दुःख के कारण जैसे एक दिन में कई बार मरने की आदत-सी हो गयी होती है—
हर दिन में अब कई मर्तबा,
मरने की आदत है लोगो!
-शिवकुमार थदानी, ‘कबीर जिन्दा है’ [तेवरी-संग्रह ] पृ. 43

हर चीज का अभाव कोई देखता नहीं,
इस दर्द का बसाव कोई देखता नहीं।
-ज्ञानेंद्र साज़, अभी जुबां कटी नहीं, [तेवरी-संग्रह ] पृ. 44

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ दैन्य ‘
———————————————————–
वांछित स्वतंत्र और सुखद जीवन को जब स्वार्थी या अधम व्यक्ति पराधीन बना देते हैं तो पराधीन व्यक्ति की हालत, दीनता व असहायता में बदल जाती है-
शक्ति पराजित हो जाती है मात्र समय से,
सिंह खड़ा है बन्दी-बेबस चिडि़याघर में।
-राजेश महरोत्रा, कबीर जिन्दा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 15

टोपी जिसकी रही उछलती-टुकड़े जिसे नसीब नहीं,
दुनिया उड़ा रही है हाँसी, चुप बैठा है गंगाराम।
-जगदीश श्रीवास्तव, कबीर जिन्दा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 41
अशांति, यातना, शोषण, उत्पीड़न के शिकार व्यक्ति का शांत और प्रसन्नचित्त, अशांति की भाव-दशा ग्रहण कर लेता है-
मेरे मेहमान ही घर आ के मुझे लूट गये,
मैं उन्हें ढूंढता फिरता हूं निगहतर लेकर।
-दर्शन बेज़ार, देश खण्डित हो न जाए [तेवरी-संग्रह ] पृ. 29

हर किसी में तिलमिलाहट-सी है एक,
दर्द कुछ हद से घना है आजकल।
-सुरेशत्रस्त, अभी जुबां कटी नहीं [तेवरी-संग्रह ] पृ. 38

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ याचना ‘
———————————————————–
खल, हर किसी को पल-पल प्रताडि़त, अपमानित करते हैं। सज्जन उन्हें ऐसा न करने के लिये दया की भीख मांगते हैं। वे याचक-भाव के साथ हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं-
याचक भाव लिये मुख पर-आंखों में आंसू का दरिया,
मुखियाजी का जैसे होकर दास खड़ा है होरीराम।
-सुरेशत्रस्त, ‘कबीर जिन्दा है’ [तेवरी-संग्रह ] पृ.51

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ शंका ‘
————————————————————–
अनगिनत उलझनों, समस्याओं से घिरे आदमी के जीवन में भविष्य को लेकर शंकाओं का ज्वार उठना स्वाभाविक है। ठीक इसी प्रकार साम्प्रदायिक वातावरण में कर्फ्यू घोषित हो जाने के बाद दो जून की रोटी की जुगाड़ में घर से बाहर गये निर्धन के परिवार को उसके अनिष्ट की शंका सतायेगी ही। साहूकार के कर्ज को समय पर न लौटा पाने वाले निर्धन का मन आने वाले बुरे दिनों से आशंकित तो रहेगा ही।

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ याचना ‘
——————————————————–
जनतांत्रिक तरीके से चुनी गयी एक घोषित जनवादी सरकार जब अजनवादी कार्य करने लगे तो शंकित होना स्वाभाविक हैं-
पूंजीवाद प्रगति पर यारो,
ये कैसा जनवाद देश में।
-गिरिमोहन गुरु, कबीर जिन्दा है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 17

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ विषाद ‘
————————————————————-
अपनी बर्बादी का मातम करता हुआ व्यक्ति जब यह देखता है कि उसके अपनों ने ही उसे लूटा है, उसके रंगीन सपनों को कमरतोड़ महंगाई ने कूटा है, वह इस व्यवस्था के लुटेरों के चुंगल से जैसे-तैसे छूटा है तो उसके मन में एक गहरा विषाद छा जाता है-
देश हुआ बरबाद आजकल,
पनपा घोर विषाद आजकल।
चोर-सिपाही भाई-भाई,
कौन सुने फरियाद आजकल।
-अनिल कुमार ‘अनल’, कबीर जिन्दा है’ [तेवरी-संग्रह ] पृ.-64

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ संताप ‘
————————————————————-
ताप के समान भाव लिये शोषित और उत्पीडि़त व्यक्ति की दशा ऐसी होती है, जिसमें वह तड़पता-छटपटाता और तिलमिलाता रहता है-
अब तो प्रतिपल घात है बाबा,
दर्दों की सौगात है बाबा।
-सुरेश त्रस्त, अभी जुबां कटी नहीं [तेवरी-संग्रह ] पृ.37

हर खुशी अब आदमी के गाल पर,
एक झुर्री-सी जड़ी है दोस्तो!
-ज्ञानेंद्र साज़, अभी जुबां कटी नहीं [तेवरी-संग्रह ] पृ. 46

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ आवेग ‘
————————————————————-
अत्याचार से पीडि़त व्यक्ति भले ही असहाय होकर एकांत में बैठा हो, लेकिन उसका मन अपमान-तिरस्कार-मार-बलात्कार से उत्पन्न आघात के कारण असह्य वेदना को प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्ति अपने शत्रु के साथ मन के स्तर पर युद्ध लड़ते हैं। उनका मन शत्रु के प्रति सदैव उग्र रहता है और बार-बार यही कहता है-
मैं डायनमाइट हूं ये भी,
इक दिन दूंगा दिखा लेखनी।
टूटे बत्तीसी दर्दों की,
ऐसे चांटे जमा लेखनी।
-रमेशराज, अभी जुबां कटी नहीं [तेवरी-संग्रह ] पृ.51,53़

तुम पहने हो बूट मिलन के ठेंगे से,
तुम पर महंगा सूट मिलन के ठेंगे से।
-डॉ. राजेंद्र मिलन, सूर्य का उजाला, वर्ष-16, अंक-16, पृ.2

हमसे सहन नहीं होते हैं अब सुन लो,
बहुत सहे आघात, महंगाई रोको।
-ज्ञानेंद्र साज़, अभी जुबां कटी नहीं [तेवरी-संग्रह ] पृ. 47

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ भय ‘
——————————————————–
विरोध-रस के आलंबन, आश्रयों को आतंकित और भयग्रस्त करते हैं। किंतु असहाय और निर्बलों के भीतर पनपा भय, भयानक-रस का परिचय न देकर उस वक्त विरोध-रस की लय बन जाता है, जब इस सच्चाई तक आता है-
रहनुमा सैयाद होते जा रहे हैं देश में,
भेडि़ए आबाद होते जा रहे हैं देश में।
आदमी सहता रहा जुल्मो-सितम ‘अंचल’ मगर,
जिस्म अब फौलाद होते जा रहे हैं देश में।
-अजय अंचल, अभी जुबां कटी नहीं [तेवरी-संग्रह ] पृ.20

विरोध-रस का आश्रयगत संचारी भाव– ‘ साहस ‘
———————————————————-
यह तय है कि स्थायी भाव आक्रोश, दमन, शोषण, उत्पीड़न आदि से उत्पन्न होता है, अतः दमित, शोषित, पीडि़त व्यक्ति का दुःख, शोक, भय, दैन्य, अशांति, आत्म-प्रलाप, संताप, शंका, याचना, क्रंदन आदि से भर उठना स्वाभाविक है।
पीडि़त व्यक्ति में दुःख, शोक, भय, दैन्य, अशांति, आत्म-प्रलाप, संताप, शंका, याचना, क्रंदन आदि की स्थिति कुछ समय को ही अपना अस्तित्व रखती है। तत्पश्चात एक अग्नि-लय बन जाती है, जो पीडि़त व्यक्ति को एक नयी क्रांति के लिए उकसाती है।
आक्रोशित व्यक्ति के याचना-भरे स्वर मर जाते हैं। उनकी जगह ऐसी भाषा जन्म लेती है, जिनके हर शब्द में शत्रु वर्ग के विरुद्ध विस्फोटक भरा होता है। वाणी चाकू की धार का काम करती है। शत्रु वर्ग के कलेजे में छुरी की तरह उतरती है-
देश-भर में अब महाभारत लिखो,
आदमी को क्रांति के कुछ खत लिखो।
-अनिल कुमार अनल, इतिहास घायल है [तेवरी-संग्रह ] पृ. 12

कसम है तुझे अपने देश की मांओं की,
संविधान बेचने वालों से वास्ता न रखना।
-अशोक अश्रु, सूर्य का उजाला, समीक्षा अंक, पृ.2
————————————————–
+रमेशराज की पुस्तक ‘ विरोधरस ’ से
——————————————————————-
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
मो.-9634551630

Language: Hindi
Tag: लेख
444 Views

You may also like these posts

कभी उन बहनों को ना सताना जिनके माँ पिता साथ छोड़ गये हो।
कभी उन बहनों को ना सताना जिनके माँ पिता साथ छोड़ गये हो।
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
2716.*पूर्णिका*
2716.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दीपावली के अवसर पर
दीपावली के अवसर पर
जगदीश लववंशी
*Tapestry of Life*
*Tapestry of Life*
Veneeta Narula
सलाम मत करना।
सलाम मत करना।
Suraj Mehra
महिला दिवस विशेष दोहे
महिला दिवस विशेष दोहे
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
आजादी विचारों की
आजादी विचारों की
Roopali Sharma
*पीला भी लो मिल गया, तरबूजों का रंग (कुंडलिया)*
*पीला भी लो मिल गया, तरबूजों का रंग (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
तितली तुम भी आ जाओ
तितली तुम भी आ जाओ
उमा झा
- खामोश मोहब्बत -
- खामोश मोहब्बत -
bharat gehlot
धरती का स्वर्ग
धरती का स्वर्ग
राकेश पाठक कठारा
श्री श्याम भजन 【लैला को भूल जाएंगे】
श्री श्याम भजन 【लैला को भूल जाएंगे】
Khaimsingh Saini
World tobacco prohibition day
World tobacco prohibition day
Tushar Jagawat
मीठे बोल
मीठे बोल
Sanjay ' शून्य'
इस जनम में तुम्हें भूल पाना मुमकिन नहीं होगा
इस जनम में तुम्हें भूल पाना मुमकिन नहीं होगा
शिव प्रताप लोधी
हिंदी दोहे - सभा (दोहाकार- राजीव नामदेव राना लिधौरी)
हिंदी दोहे - सभा (दोहाकार- राजीव नामदेव राना लिधौरी)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
तुम्हारी दुआ।
तुम्हारी दुआ।
सत्य कुमार प्रेमी
वक्त की पालकी में  …..
वक्त की पालकी में …..
sushil sarna
Isn’t strange how so many versions of you live in other peop
Isn’t strange how so many versions of you live in other peop
पूर्वार्थ
क्या गजब बात
क्या गजब बात
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
प्रेम के दो  वचन बोल दो बोल दो
प्रेम के दो वचन बोल दो बोल दो
Dr Archana Gupta
मुक्तक... छंद मनमोहन
मुक्तक... छंद मनमोहन
डॉ.सीमा अग्रवाल
गरीब हैं लापरवाह नहीं
गरीब हैं लापरवाह नहीं
सुशील भारती
मुझे जो भी कारक सेवा प्रदान करते है मनोबल को बढ़ाते है मैं स
मुझे जो भी कारक सेवा प्रदान करते है मनोबल को बढ़ाते है मैं स
Rj Anand Prajapati
गुरु
गुरु
R D Jangra
ये कैसे आदमी है
ये कैसे आदमी है
gurudeenverma198
💐💐दोहा निवेदन💐💐
💐💐दोहा निवेदन💐💐
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
■हरियाणा■
■हरियाणा■
*प्रणय*
उदास देख कर मुझको उदास रहने लगे।
उदास देख कर मुझको उदास रहने लगे।
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
Cottage house
Cottage house
Otteri Selvakumar
Loading...