राजयोगमहागीता: निरंजन निर्पेक्ष हैनिस्पृह स्वयं सिद्ध:: जितेन्द्र कमलआनंद( पो ६९)
सारात्सार : घनाक्षरी: ३/२१
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निरंजन निर्पेक्ष है , निस्पृह स्वयं सिद्ध ,
जान जाता जन्म जात ज्ञान का भण्डार है ।
वो आत्मविश्वस्त और आत्मकेंद्रित होकर,़
सदा वर्तमान स्वयं भव सिंधु पार है ।
कर्तव्य निर्वहन को कर्तव्य परायणता ,
परम अपेक्षित है , जीवन निखार हैं ।
जय हो या पराजय हो , प्रारब्ध अधीन वह–
होकर अचिंत्य ही रखता व्यवहार है ।।३/ २१ घनाक्षरी ।।
—– जितेंद्रकमलआनंद| , रामपुर ( उ प्र )