राजयोगमहागीता: गुरुप्रणाम:: जितेंद्रकमलआनंद ( पोस्ट६५)
गुरुप्रणाम::: ( घनाक्षरी छंद ६)
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सुख दुख शीत, उष्णादि द्वन्दों से रहित जो–
व्योम के समान , सूक्ष्म , नित्य अविराम हैं ।
निर्मल अचल और हैं ध्यान गुरु मूर्ति जो —
श्वेत कमलासीन व ललित ललाम हैं ।
सद्गुरु ही जो आत्मा हैं गुरु ही साक्षात शिव ,
गुरु ही मीत मेरे बांधव अभिराम हैं ।
हैं योग क्षेम अचिंतय , अव्यक्त , त्रिगुणातीत
ऐसे सद्गुरु को हम करते प्रणाम हैं ।।
—— जितेन्द्र कमल आनंद