संता कहे पुकार

धन की सीमा टूटती,
घटत दवा का अंत।
दुआ असर करती सदा,
कहते सारे संत।।१.
जड़ता तन में आ गई,
मन में उठे तरंग।
तन मन पर भारी हुआ,
मन के कितने रंग।।२.
दामन पाप समेटता,
पाप गठरियां लाद।
कैसे चलने को कहें,
करनी करके याद।।३
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कवि- गजानंद डिगोनिया ‘जिज्ञासु’
भैरुंदा जिला सीहोर (म.प्र.)