राज योग महागीता: गुरुप्रणाम: ज्ञानकी जो मूर्ति हैं:: जितेन्द्र कमल आनंद: (पोस्ट६३(
गुरु प्रणाम ::: घनाक्षरी
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ज्ञानकी जो मूर्ति हैं , श्री श्री आनंद के जो धाम हैं ,
हैं करते अपना नहीं कभी भी सुप्रचार जो ।
चाहता अहेतुकी ही कृपा , कृपा निधान से ,
उनकी कृपा के बिना सब कुछ असार जो ।
भक्ति – भाव से विभोर सार्थक हुआ है यह,
गुरु हैं समर्थ, दिया जीवन उपहार| जो ।
जिसकी कृपा से रचूँ काव्य यह पुनीत मैं,
करता प्रणाम उनको ज्ञान के भण्डार जो ।।४!!
—– जितेंद्रकमलआनंद