चक्र सुदर्शन , विहग गरण जब फूले थे बल म्ं बाला ।
चक्र सुदर्शन , विहग गरुण जब फूले थे बलमें , बाला!
कृष्ण इंगितों पर लीलाकर अहम् हरा पलमें ,बाला !
रूप धरा हरि ने रघुवरका, बनी सत्यभामा , सीता ।
किये कंत के चरण- स्पर्श , तज भामा पद तुमने, बाला !
—— जितेंद्रकमलआनंद