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20 Jan 2025 · 1 min read

नई शुरुआत

मैं लिख रही हूं रोज एक नई शुरुआत
मैं लिख रही हूं रोज एक नई बात
मैं बढ़ रही हूं नई दिशा की ओर
मैं कम कर रही हूं अपने पास से
बढ़ता हुआ शोर
मुझे नहीं मालूम ये दुनिया कैसी है
मेरे लिए तो मेरे ही जैसी है
मैं अपना रही हूं रोज नए तरीके
मैं सीख रही हूं जीने के सलीके
मैं चाहती हूं खुशियों की सौगात
मैं करती हूं आजकल खुद से ढेर सारी बात
मैं जला रही हूं रोज आशाओं के दिए
फैला रही हूं खुशियां का प्रकाश
जिसने मुझे जो समझाया उसको ही मैंने दिल से अपनाया
मैं कर रही हूं रोज नई शुरुआत
मैं करती हूं जब ईश्वर से बात तब मिल जाते हैं मुझे मेरे उलझे हुए सवालों के ज़वाब
मैं अब समझ रही हूं अपने जज़्बात
हां मैं कर रही हूं रोज़ नई शुरुआत।

रेखा खिंची ✍️

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