मंजिल पाने का
गीतिका
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आगे नित बढ़ते जाना है, करें विचार।
एकमात्र मंजिल पाने का, यह आधार।
भाव निराशा का छोड़ें अब, लेकर आस।
सभी मुश्किलें करनी हमको, है स्वीकार।
सामने आए परिस्थितियां, जब अनुकूल।
स्नेह भरे सपने मिल कर लें, सब साकार।
सबके मन में जगह मिलेगी, शुभ सम्मान।
भेदभाव से रहित करें हम, जी भर प्यार।
तूफानी झंझावात बहुत, बढ़ते कष्ट।
अवरोधों से निज बलबूते, पाना पार।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य