सोचिएगा _
सोचिएगा _
चाय एक नशा है ,
इसकी निर्धारित समय में
तलब लगती है ।
क्या ऐसे ही _
पठन पाठन की भी तलब लगती है ।
यदि किसी के साथ ऐसा है तो उसे आप
“चिंतनशील मानव” की श्रेणी में रख रखते है ।
राजेश व्यास अनुनय
सोचिएगा _
चाय एक नशा है ,
इसकी निर्धारित समय में
तलब लगती है ।
क्या ऐसे ही _
पठन पाठन की भी तलब लगती है ।
यदि किसी के साथ ऐसा है तो उसे आप
“चिंतनशील मानव” की श्रेणी में रख रखते है ।
राजेश व्यास अनुनय