लक्ष्य अधूरा ही रहा
छंद – कुण्डलिया
लक्ष्य अधूरा हीं रहा, कहते हैं सब लोग।
दोष कभी मिटता नहीं, कैसा है यह रोग।।
कैसा है यह रोग, दर्द जो देते रहते।
करना है कुछ योग, अभी हैं हम-सब सहते।।
निश्चित हो उपचार, करें कैसे हम पूरा।
बार-बार का दंश, रहा जो लक्ष्य अधूरा।।
:- राम किशोर पाठक