चित्त और वित्त - मनहरण घनाक्षरी
चित्त और वित्त – मनहरण घनाक्षरी
चित्त का विकार हरें,
वित्त का भंडार भरें,
अनुकूल रखने का, श्रम सदा कीजिए।
इससे आनंद मिले,
नित नव फूल खिले,
चंचल छवि इनके, ध्यान धर लीजिए।
चित्त से प्रसन्न रहे,
वित्त का भंडार गहे,
संयम का भाव रख, उपयोग कीजिए।
चित्त- वित्त चंचल है,
जीवन का संबल है,
हीनता का कभी नहीं, भाव रस पीजिए।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978