Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 May 2025 · 1 min read

हृदय किसलय

///हृदय किसलय///

अपलक नयन हृदय किसलय,
अभिराम वर्तित संचित मनोदय।
उद्भित नवल भाव उषा का संग,
होता है ज्यों प्राची में अरुणोदय।।

मंत्रणा करने आती है संध्या,
वाणी के स्वर कंपित अनुनय।
संस्थित उर के बंधन अविराम,
क्या कह जाता यह अरुणोदय।।

अविकल भावों का यह जाल,
बनकर रहता जो मंजु मराल।
उदित दिवाकर सहचर धरणी,
मिला क्षितिज अंचल हिमभाल।।

संचित भाव संपृक्त शीतल गात,
हो रहा पल-पल यह प्रति स्नात।
जाने अनजाने तृषा बढ़ती जाती,
जैसे निकलते हों पात पर पात।।

न मैं भाव कृपण न स्वछंद उदात्त,
भाव प्रति भावों का सहज संघात।
लेकर विकच लोल कमल मैं हाथ,
सहज चलता रहा जगत के साथ।।

स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’ बालाघाट (मध्य प्रदेश)

Loading...