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29 Oct 2025 · 2 min read

#लघुकथा-

#लघुकथा-
■ जय हो बड़प्पन की।
[प्रणय प्रभात]
सूबे के सबसे बड़े नेताजी चुनावी मौसम में दल-बल के साथ दौरे पर निकले। मीडिया वालों का क़ाफ़िला रोज़ की तरह आज भी उनके पीछे था। अचानक एक जगह नेता जी की गाड़ी को ब्रेक लगे। आगे की सीट से उठ कर बाहर आए अंगरक्षक ने अदब से गेट खोला। नेताजी मदमस्त चाल से सड़क किनारे फुटपाथी विक्रेताओं की ओर बढ़े। गाड़ी के ब्रेक के साथ ब्रेकिंग की गंध पा चुके मीडिया-कर्मी पहले से मोर्चा संभाल ही चुके थे। नेताजी की एक-एक क्रिया कैमरों में क़ैद हो रही थी।
नेताजी ने चार-छह विक्रेताओं से खील-बताशे, मिट्टी के दीये, कलश, सूप, टोकरी, झाड़ू आदि की खरीदी की। अंगरक्षकों ने सारा सामान लग्ज़री कार की डिक्की में ले जाकर रख दिया। छोटे-मोटे दुकानदारों से हल्की-फुल्की बात करने के बाद नेताजी कार में सवार हुए। कारवां एक बार फिर उसी शानो-शौक़त के साथ आगे बढ़ गया। दुकानदारों व भीड़ को अचरज में डाल कर। सबकी ज़ुबान पर अब केवल नेताजी की सादगी और बड़प्पन की चर्चा थी।
कुछ देर बाद नेताजी के बड़प्पन व ज़मीन से जुड़ाव की खबरें तमाम चैनलों की सुर्खी बन कर घर-घर तक पहुंच गई। चउए-पउए वीडियो फुटेज वायरल करने में जुट गए। प्रिंट मीडिया के लिए तस्वीरों के साथ प्रेस-नोट रिलीज़ हो गए। कार में मोबाइल पर अपने कारनामों की धूम से नेताजी गदगद थे। कुछ देर बाद उनका क़ाफ़िला उनके आलीशान बंगले में दाख़िल हुआ। नेताजी ने दीवाली के लिए खरीदा सारा सामान अपने ड्राइवर को बाल-बच्चों के साथ त्यौहार मनाने के लिए दे दिया। इस आदेश के साथ, कि वो उसे अपने क्वार्टर में रख कर तत्काल वापस आए। ताकि वे मैडम के साथ दीवाली की शॉपिंग के लिए मेगा-मॉल जा सकें। नेताजी की रग-रग से वाकिफ़ गनर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। उसे पता था कि बंगलों के त्यौहार फुटपाथी सामान से नहीं मना करते।
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-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)

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