भीषण वर्षा
घिर आई काली घटा, दादुर करते शोर।
भरे खेत खलिहान सब,जल दिखता चहुँओर।
वृक्ष शाखा पर सारिका,बैठी है बस मौन,
निरख वाटिका की दशा,भाग रहे वन मोर।।
सिक्त मृदा से आ रही,अति भीषण दुर्गंध।
कीचड़ में गिरने लगे,होकर सारे अंध।
भरे तलैया ताल सब,भरे खेत खलिहान,
भीषण जल की धार से, टूट गए सब बंध।।
देख प्रकृति के कोप को, विचलित सब इंसान।
निरख दशा खलिहान की, क्रंदन करें किसान।
हाथ जोड़ कर वंदना, करते हैं करतार,
भू पर भीषण मेह अब,रोको कृपानिधान।।
भीषण वर्षा की नहीं,झेल सकेंगे मार।
गिर जाएंगे मेह से, निर्धन के घर-द्वार।
विपदा द्वारे पर खड़ी,मुँह अपना फैलाय,
कृपा दृष्टि अपनी करो,जग के पालनहार।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)