अब तेरी भी खैर नहीं

बहुत सह लिया तुमने अबतक,
अब रहने दो, अब और नहीं।
उठाओ आवाज़, ग़लत का प्रतिकार करो,
वरना अब तेरी भी खैर नहीं।
जो चुप रहा, वो भी दोषी हुआ,
जो सहता गया, वो भी खो गया।
हर अन्याय की एक हद होती है,
चुप्पी से हर सच भी सो गया।
जो सहते-सहते झुक गया है,
वो कंधा अब उठना चाहता है।
जिसने आंसू पी लिए थे चुपचाप,
अब वो चीख बनना चाहता है।
न्याय मांगना कोई पाप नहीं,
अपने हिस्से का हक मांगना उचित है।
जो ख़ुद डर से पीछे हटते रहे,
उनके लिए लड़ना क्या उचित है?
हर बार क्यों तुम ही मौन रहो?
हर बार क्यों तुम ही त्याग करो?
अब समय है आईना दिखाने का,
चाहता हूं तुम खुद को भी जागरूक करो।
उन चेहरों से अब सवाल करो,
जो मुस्कराकर ज़ुल्म करते हैं।
उन हाथों को अब झटक दो,
जो सहलाते हैं, फिर चोट करते हैं।
नज़रों को मिलाना सीखो,
डर को भी डराना सीखो।
न्याय की मशाल तुम भी थामो,
अब अन्याय को जलाना सीखो।
ये दुनिया सिर्फ सहने वालों की नहीं,
ये जगह अब बोलने वालों की है।
जो अब भी चुप है, सोच ले ज़रा,
कल बारी तेरे पैरों के छालों की है।
बदलेगा वक्त, पर शुरुआत तुझसे होगी,
तू उठेगा, तो क्रांति रुकेगी नहीं।
आज तू लड़ेगा तो कल कई और जागेंगे,
वरना ये आग तुझे जलाने से भी हिचकेगी नहीं।
तो बोल! अब तू मौन नहीं रहेगा,
तुझे क्रांति से कोई बैर नहीं।
जो ज़ालिम है, उसका प्रतिकार कर,
वरना अब तेरी भी खैर नहीं।
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