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13 Apr 2025 · 1 min read

न जाम बना न मयकदा जो बुझा सका हो मेरी प्यास

न जाम बना न मयकदा जो बुझा सका हो मेरी प्यास
हर महफ़िल मुझे नशे का वादा करता है,
जब -जब सोचता हूं इक घूंट में पी जाऊं ज़िन्दगी सारी
मेरे रहबर मुझे होश में लाने की दवा करता है।
अब तो छोड़ दी है ज़िद मैंने भी नशा करने की
जो टूट गया है भ्रम प्यास बुझने का
धोखा देता हूं अब जमाने को,की परवान पर है नशा मेरा
उनके खाली प्यालों में मैं अब जाम भरा करता हूं।
ले लिया है अब शमशीरे कलम हाथ में जब से
दिल का लहू कागजों पर फैला कर प्यास बुझाया करता हूं
चैन ओ सुंकूं मिलता है जो अब लफ़्ज़ों के जाम से नींद भर सोता हूं मैं अब दुनिया को जगाया करता हूं।

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