शायद तुम ना जान सकी
शायद तुम ना जान सकी,
मुझको ना पहचान सकी ।
सखी बनाया तुमको मैंने,
तु ये भी ना मान सकी ।।
शायद तु ना जान सकी,
मुझको ना पहचान सकी ।
दिल में मेरे जो कुछ भी है,
वह क्यों ना तुम जान सकी ।।
शायद तु ना जान सकी,
मुझको ना पहचान सकी ।
मेरी हर धड़कन में तु है,
मेरे मन मंदिर में तु है ।।
माँ के बाद मैंने तुझको,
सबसे ज्यादा चाहा है ।
तु ये भी ना जान सकी,
शायद ना पहचान सकी ।।
मेरा दुर्भाग्य ऐसा है,
कि मैं कुछ कह नहीं सकता ।
बिना कहे भी तो मैं अब,
ए हमदर्द यूँही रह नहीं सकता ।।
तुम ही तुम हो मेरे दिल में,
बिना तेरे मैं यूँही रह नहीं सकता ।
सुनाऊं किसको अफसाने,
दर्द हर किसी से यूँही कह नहीं सकता ।।
भरोसा हो गया तुमपे,
भरोसा हर किसी पे हो नहीं सकता ।
कहूं मैं बात अब किससे,
हर किसी से यूँही कह नहीं सकता ।।
ललकार भारद्वाज