कहे जो तू सच वो ही फ़क़त है

ग़ज़ल
जो तू कहे सच वो ही फ़क़त¹ है, तो ये ग़लत है
सहीह तेरा मेरा ग़लत है, तो ये ग़लत है
है सारे आलम का तू सिकंदर भले ही लेकिन
हमारे दिल तक ये सल्तनत है, तो ये ग़लत
है
अदब न अज़्मत² न कोई ताज़ीम³ है बड़ों की
अगर ये तालीम-ओ-तर्बियत⁴ है, तो ये ग़लत है
लिबास-ए-शर्म-ओ-हया न तन पर, रिदा⁵ न सर पर
अगर ये दौर-ए-जदीदियत⁶ है, तो ये ग़लत है
‘ अनीस’ तुम से नहीं हूँ मैं मुत्तफ़िक़⁷,मगर तुम
समझते हो ये मुख़ालिफ़त⁸ है, तो ये ग़लत है
– अनीस शाह अनीस
1.मात्र, केवल 2. प्रतिष्ठा 3.सम्मान 4.शिक्षा और परवरिश 5.सिर की चादर 6.आधुनिक युग 7.सहमत 8.विद्रोह