जलियांवाला बाग

जलियांवाला बाग
जलियांवाला बाग की घटना, दिल दहलाने वाली थी
अंग्रेजी शासन की क्रूरता, बर्बर से बर्बर काली थी
निहत्थे लोगों पर गोलीबारी, शर्मसार करने वाली थी
मानवता पर दाग थी ये, गोरों की हरकत काली थी
छद्म सभ्य अंग्रेजों की करतूतें, दुनिया हिलाने वाली थी
आजादी की मांग दबाने,रौलट एक्ट बनाया था
सभा जुलूस और प्रेस पर,पावंदी जो लाया था
१३ अप्रैल १९१९ को,बैशाखी का शुभ दिन था
रौलट एक्ट के विरोध को, बाग में आयोजन था
खुशी खुशी उस अवसर पर, हजारों सपूत जुटे थे
बूढ़े बच्चे नौजवान, स्त्रियों के भी कदम बढ़े थे
देश प्रेमियों को दहलाने की, अंग्रेजों ने ठानी थी
अंग्रेज अफसर ड्वायर ने,जनरल डायर की तैनाती की डायर ने बैशाखी के दिन, भीषण नर संहार किया
निर्दोष निहत्थे नागरिकों स्त्री बच्चों को तक भून दिया
चारों ओर से चलीं गोलियां,बचने का नहीं रास्ता था
क़ूर फौज हत्यारा डायर,फायर पर फायर करता था
उस हत्यारे ने कई राउंड गोलियां, भीड़ पर बरसाईं थीं
जान बचाने लोगों ने, कुएं में छलांग लगाई थी
पट गया कुआं भी लाशों से,कई सौ ने जान गंवाई थी
जान बचाने लोग वाग की, दीवारों पर चढ़ जाते थे
ताबड़तोड़ फायरिंग में,टप से नीचे गिर जाते थे
बड़ा ही था भीवत्स दृष्य,चीख पुकार मची थी
मृतक और घायलों के खून से, माटी सनी पड़ी थी
नहीं कोई था पानी देने बाला, उपचार की बात कहां थी
लाशों के संग जिंदा घायल, दर्द से कराह रहे थे
पड़े रहे रात भर घायल,लोग मदद को चीख रहे थे
जो बच सकते थे घायल,वे भी लाशों में बदल गए
अंग्रेजी शासन की क़ूरता, सभी हदों को पार कर गए
उस सामूहिक नरसंहार से, आक्रोश देश में आया था
जन जन आक्रोशित हुआ देश में, क़ांति नई लाया था
जलियांवाले हत्याकांड ने, जन ज्वाला भड़काई थी
सारे देश में आजादी की,नई चेतना आई थी
जलियांवाला बाग में जाकर,नम आंखें हो जाती हैं
दिखते हैं गोलियों के निशान, वीरों की याद दिलाते हैं
जय हिंद