दोहा पंचक. . . . . दिल
दोहा पंचक. . . . . दिल
जितना छेड़ो जख्म को, उतनी बढ़ती पीर ।
तनहाई में तैरता , नैन तटों पर नीर ।।
मुंडेरों पर आँख की, तड़प रहे कुछ ख्वाब ।
किसने तोड़े ख्वाब यह, मिलता नहीं जवाब ।।
दर्द यहाँ बेनाम हैं, उल्फत है गुमनाम ।
हुस्न यहाँ पर बेवफ़ा, इश्क यहाँ बदनाम ।।
दिल को बैचैनी मिली, आँखों को सैलाब ।
एक शुआ ने भोर की, तोड़े सारे ख्वाब ।।
दिल टूटा कुछ इस तरह, जैसे टूटे काँच ।
जीवन भर बुझती नहीं, टूटे दिल की आँच ।।
सुशील सरना / 12-4-25