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12 Apr 2025 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . . दिल

दोहा पंचक. . . . . दिल

जितना छेड़ो जख्म को, उतनी बढ़ती पीर ।
तनहाई में तैरता , नैन तटों पर नीर ।।

मुंडेरों पर आँख की, तड़प रहे कुछ ख्वाब ।
किसने तोड़े ख्वाब यह, मिलता नहीं जवाब ।।

दर्द यहाँ बेनाम हैं, उल्फत है गुमनाम ।
हुस्न यहाँ पर बेवफ़ा, इश्क यहाँ बदनाम ।।

दिल को बैचैनी मिली, आँखों को सैलाब ।
एक शुआ ने भोर की, तोड़े सारे ख्वाब ।।

दिल टूटा कुछ इस तरह, जैसे टूटे काँच ।
जीवन भर बुझती नहीं, टूटे दिल की आँच ।।

सुशील सरना / 12-4-25

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