गुरु और शिष्य का रिस्ता
गुरु और शिष्य का रिस्ता
नदी और किनारे की तरह होता है।
जैसे अगर किनारा मजबूत हो और सही राह दिखाये
तो पानी आसानी से समंदर तक पहुँच जाता है।
वैसे ही गुरु के दिखाये रास्ते से शिष्य
आसानी से मंज़िल तक पहुँच जाता है।
और किनारा ना हो तो बच्चे बाढ़ कि तरह बिखर भी सकते हैं।
जैसे किनारे को छोड़ कर पानी को आगे जाना पड़ता है।
वैसे ही शिष्यों को भी किनारों का सहारा लेकर
आगे बढ़ते रहना पढ़ता है।
—वादी—