भगवान कृष्ण। ~ रविकेश झा।

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब आशा करते हैं कि आप सभी मित्र अच्छे और पूर्ण स्वस्थ होंगे और निरंतर ध्यान में प्रवेश कर रहे होंगे। चुनाव हमारा होगा कि हम क्या चुनते हैं हम किस दिशा में निर्णायक क़दम उठाते हैं। हम कैसे चलते हैं कैसे उठते हैं कैसे इन्द्रियां का प्रयोग और उपयोग करते हैं क्या हम गुण या मात्रा पर जोर दे रहे हैं। ये सभी हमारा चुनाव होता है कि हम कैसे जीवन जिए कैसे आगे बढ़े ये सब हमारा चुनाव पर निर्भर करता है। हम सभी बस अच्छा जीवन जीना चाहते हैं बुराई से पीछा छुड़ाना चाहते हैं जबकि अच्छाई और बुराई दोनों एक सिक्को के दो पहलू हैं, लेकिन हम सब एक को पकड़ते हैं दूसरे को छोड़ते हैं वही से जटिलता शुरू होती है। हम स्वीकार करना नहीं चाहते बस हम मन में लड़ाई शुरू कर देते हैं। हमें पहले सभी चीजों को स्वीकार करना होगा तभी हम पूर्ण परिचित होंगे नहीं तो अंदर बाहर बस कामनाओं और वासनाओं की लड़ाई चलती रहेगी। जिस भी वस्तु को जानना हो या परे उठना हो तो उसे पहले स्वीकार करना होगा, लेकिन हम अच्छाई को बस स्वीकार करते हैं वह बुराई से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। नहीं ऐसे में जीवन में बस जटिलता बढ़ती जायेगी न कि आप सरल होंगे बल्कि जीवन में मुश्किल बढ़ती जायेगी। हम सभी जीवन जीते हैं कोई बाहर के लिए कोई अंदर के लिए कोई अपने लिए कोई परमात्मा या दूसरे व्यक्ति के लिए या सबके लिए जीते हैं, लेकिन अंदर कोई न कोई कसर बाकी रह जाता है। मन पूर्ण संतुष्ट नहीं होता कुछ और चाहिए कुछ और लोग का भला हो जाए या मेरा भला हो जाए, मन में कुछ न कुछ चलता रहता है हम शांत या निष्काम में नहीं जीते हम करुणा को निष्काम नहीं बोल सकते क्योंकि हम पूर्ण करुणा करते तो करुणा रटने की आवश्कता नहीं पड़ता ना निष्काम बोलने कि हम बाहर से भी मौन अंदर से भी मौन होते वह भी पूर्ण संतुष्ट और फिर दुःख ईर्ष्या घृणा क्रोध लोभ मोह न बाहर न अंदर होता आप कुछ अलग होते आप शून्य हो सकते हैं आपका अधिकार है आप अमूल्य धरोहर है आप ईश्वर है आप ईश्वर से भी परे है ईश्वर भी मानना हुआ कि हम ईश्वर है मान कौन रहा है बोल कौन रहा है हो सकता है अभी वह द्रष्टा से परिचित नहीं हुआ होगा पांचवें या छठे शरीर या चक्र तक सीमित हो गए होंगे सूक्ष्म और ब्रह्म से पूर्ण परिचित नहीं हुए होंगे बस उन्हें कुछ सीढ़ी दिख गया और सीधे पार गए कूद गए शार्टकट से और बोलने भी लग गए कि हम भगवान है। वह पूर्ण संघर्ष नहीं करना चाहते वह पूर्ण जानना नहीं चाहते बस तोता के तरह दोहराना चाहते हैं जो ईश्वर होगा वह स्वयं कैसे बोल सकता है कैसे एक इन्द्रियां को विशेष महत्व देगा, दृश्य को कैसे द्रष्टा का संज्ञा देगा, नहीं साहब हम जल्दी में हैं फिर हम कुछ बनना चाहते हैं चाहे वह ईश्वर ही क्यों न हों चाहे वह संत या कुछ अन्य पद ही क्यों न हो, सब कामना है सब भौतिक है सब मानना है एक इन्द्रियों पर आकर रुक जाना है मन में अटक जाना है अभी भाव बचा हुआ है कुछ बनने की कुछ बोलने की करने की सब कामना है। लेकिन हम कुछ बन जाते हैं तो संघर्ष और अनुभव के साथ बोलने लग जाते हैं मानने लग जाते हैं सब बाहरी अनुभव है सब दाव पेंच है, सब मानना है फिर हम सब अपने आप को बुद्धिमान भी समझने लगते हैं। फिर मोह भी बढ़ने लगता है आसक्ति भी अपना स्थान ले लेता है हम फिर अंदर से जटिल हो जाते हैं और बाहर से सरल होने का ढोंग करते हैं कुछ मोटिवेशनल कोट्स या ज्ञान देने लगते हैं।
हम जागरूकता के साथ देखते ही नहीं बस क्रोध घृणा वासना से भर जाते हैं पूर्ण विचार नहीं करते देखते रहते नहीं है बस देख लेते हैं अपना अपना अर्थ मतलब निकाल लेते हैं। गीता के तरह भगवान कृष्ण ने अर्जुन से युद्ध के लिए बोले तो हम खुश प्रेम के लिए बोले तो खुश उनके कुछ विचार खतरनाक है लेकिन हम सब बस अर्थ निकालने में माहिर खिलाड़ी हैं। वह कभी संत महात्मा के तरह ज्ञान की बात करते हैं कभी कर्मयोग की बात करते हैं कभी भक्तियोग की कभी प्रेम की कभी हिंसा की उन पर विश्वास करना मुश्किल है कि वह आगे क्या करेंगे कहना मुश्किल है, ये शब्द उन पर सटीक बैठता है सुनो सबका करो अपने मन का, वह वादा भी कर देते हैं तोड़ भी देते हैं और कभी वचन निभा भी देते हैं जैसे द्रौपदी के साथ या अन्य राजा के साथ, या माता पिता के साथ। वह क्या करेंगे कहना कठिन है वह राम जी तरह नहीं है की प्राण जाए पर वचन न जाई ये उन पर नहीं बैठता है। वह अद्भुत है उनमें आपार क्षमता है उनके हर बात में सटीकता दिखाई देता है वह एक महान ज्ञानी, योद्धा, राजनेता, प्रेमी, पति, मित्रता में भी महान उन्हें आप हर रूप में देख सकते हैं चाहे बांसुरी वादक के रूप में चाहे माखन मिश्री खाना हो चाहे सखी का वस्त्र छुपाना हो, तंग करना ये सब प्रेम और उत्साहपूर्ण जीवन को दर्शाता है। वह पूर्ण रूप है वह स्वयं पूर्ण है, उन्हें 64 कलाओं में देखा जाता है इसमें उनके गुरु महर्षि सांदीपनी का भी पूर्ण योगदान है वह सभी गुणों में पूर्ण हैं वह एक महान राजनेता भी थे। उन्होंने बहुत युद्ध लड़ा और धर्म की स्थापना के लिए वह एक योद्धा भी बने राजा में उत्तम और उत्तम राजा के लिए वह राजनेता भी बने राजा भी, ताकि निष्काम कर्म पर भी चलके जीवन जिया जाए, वह सबको मौका देते थे शांति प्रेम लेकिन जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहानी उस समय प्रचलित थी लोग बस कैसे मोदी जी के तरह और अन्य नेता के तरह राज्य हरपना चाहते थे, वह इसीलिए सभी चीजों का रस लिए, उन्होंने घर संसार को त्याग नहीं किए बल्कि संसार में रहकर निष्काम में रूपांतरण हो गए और सभी के आशीर्वाद और प्रेम से सभी के हृदय में स्थान बनाने में कामयाब रहे। इसीलिए आज हम उन्हें याद करते हैं वह सभी रूपों में प्रकट हुए सभी इन्द्रियां का उपयोग निष्ठा पूर्वक किए लाभ हानि से परे है कृष्ण, कृष्ण का अर्थ ही होता है आकर्षण का केंद्र जो सबको अपने ओर आकर्षित करे सबको मोह ले इसीलिए मोहन भी कहते हैं सबको अपने ओर खीच ले, उन्हें आप अनदेखा नहीं कर सकते हैं, हां कुछ लोग बस उन्हें गलत नज़र से भी देखते हैं वह युद्ध नीति से प्रभावित नही होते हैं। उन्हें झूठा भी कहते हैं चोर भी, सब अपना अपना अर्थ निकाल लेते हैं वह महाभारत में वचन दिए थे कि वह पूरे युद्ध में कभी हथियार नहीं उठाएंगे बस सारथी ही रहेंगे अर्जुन का, लेकिन वह सबके सुनते हैं लेकिन करते अपने मन से है वह विचार पर भी विचार करते हैं वह अवचेतन मन पर रुक नहीं जाते वह पानी और खींची गई लकीर को मानते भी है और नहीं भी, उनके हिसाब से होना चाहिए जहां आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों का भला हो वह दोनों पर जोर देते हैं। लेकिन कुछ संत कहेंगे कि युद्ध से क्या होगा मरेगा नहीं पहली बात वह फिर नए शरीर में आ जायेगा फिर वही कर्म करेगा कामना या करुणा, बुद्ध हो या कबीर वह रहते तो वही कहते नानक हो या रविदास जी अष्ट्रावक्र हो वह युद्ध नीति पर प्रसंसा नहीं करते और निंदा भी नहीं, लेकिन आलोचना या विरोध हो सकता है कि जीवन मिला था वह मुक्त हो सकता है फिर जन्म लेना होगा पता नहीं कब जन्म मिलेगा मिलेगा तो भी कहां कौन से मन में रहेगा क्या करेगा यहां तक फिर से पहुंच पाएगा या फिर मृत्यु के चक्र में फंस जायेगा। तो सभी बातों को आप देखो, कृष्ण ने युद्ध किया कितने लोग धार्मिक हुए कितने लोग प्रेम करुणा ज्ञान के ओर बढ़ रहे हैं सब वासना क्रोध घृणा नाम पद प्रतिष्ठा में जी रहे हैं सबको बस अपना फ़ायदा चाहिए बस अपना अधिकार वह भी कैसे हो बेईमानी से या ईमानदारी से सब मन का भाग है कोई एक मन में है कोई दूसरे मन में, सब मन में अटका है कोई शरीर में है अटके हुए तो कोई मन में तो कोई आत्मा में, देख लिए हैं आत्मा को पूर्ण परिचित हो गए हैं लेकिन फिर भी सीढ़ी ऊपर नीचे चढ़ रह हैं। रुकना अभी नहीं चाहते समाधि लेना नहीं चाहते हैं या निष्काम में उतरेंगे या काम में, कर्म अकर्म विकर्म कृष्ण तीन कर्म बताते हैं, कर्म तो सब करता है अकर्म भी करता है विकर्म भी, निष्काम में कोई कोई पहुंचता है जो योगी होते हैं वह सभी कर्म से परिचित हो कर निष्काम में रूपांतरण हो जाते हैं और पूर्ण आनंदित और संतुष्ट हो कर जीवन का आनंद लेते हैं और बिना तनाव के जीवन जीते रहते हैं। सुख दुख लाभ हानि विजय हार सभी में प्रसन्न रहते हैं क्योंकि वह जान लेते हैं यहां मरेगा कोई भी नहीं मैं ही मारूंगा मैं ही मारूंगा लेकिन भौतिक सूक्ष्म नहीं ब्रह्म नहीं आत्मा नहीं, शून्यता को कौन मार सकता है आकाश को कौन बांध सकता है। वह बाहर से भी पूर्ण थे और अंदर से भी, वह बाहर से एक राजनेता के तरह दिखतें थे और अंदर से परमात्मा वह भी पूर्ण। उन दिनों और आज तक उनके जैसा विचारक योद्धा राजनेता और प्रेमी खोजना असंभव है, में उन्हें महापुरुष में प्रथम स्थान देता हूं उनके जैसा महान दार्शनिक आध्यात्मिक गुरु मिलना कठिन है जो वह कर गए और वह भी बच्चपन हो यां युवा अवस्था या बुढ़ापा दस्तक दी हो वह सभी में पूर्ण थे, वह शरीर को बस प्राथमिकता नहीं देते बल्कि प्राथमिकता देते ही नहीं वह मानते ही नहीं वह सर्वश्रेष्ठ और सर्वगुण संपन्न होने के बाबजूद भी उन्हें श्रेष्ठता नहीं स्पर्श करता है वह अद्भुत अद्वितीय है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान कृष्ण एक केंद्रीय व्यक्ति हैं, जिन्हें भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है माना जाता है। मैं जब विष्णु शब्द बोलता हूं तो आप विष्णु कोई भौतिक नहीं समझना बल्कि एक तत्व है तत्व से परे, जैसे ब्रह्मा विष्णु महेश, रजस सत्व और तमस, न्यूट्रॉन इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन ये सभी तत्व है गुण है इस पर कभी विस्तार से बात करेंगे पांच तत्व पर ये तीन तत्व गुण खड़ा है, पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश सबको कणों को जोड़कर ये तीनों गुण तत्व उभरता है। कृष्ण जी को भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है और भारत में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक लोकचार में उनका एक गहरा स्थान है। उनके जीवन और शिक्षाओं ने अनगिनत पीढ़ियों को प्रेरित किया है, जो कर्तव्य, धार्मिकता और भक्ति के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। मथुरा में जन्मे, कृष्ण का जीवन चमत्कारी घटनाओं और दिव्य चंचलता का एक ताना बाना है, जिसे शास्त्रों, गीतों और त्योहारों के माध्यम से मनाया जाता है। एक शरारती बच्चे से एक बुद्धिमान नेता तक की उनकी यात्रा उनके दिव्य व्यक्तित्व के कई पहलुओं को दर्शाती है। कृष्ण का प्रारंभिक जीवन चमत्कारी घटनाओं और दैवीय हस्तक्षेपों से चिह्नित था। एक बच्चे के रूप में, उन्होंने असाधारण शक्तियों का प्रदर्शन किया, नकारात्मक ऊर्जा को हराया और अपने गांव को नुकसान से बचाया। उनकी चंचल हरकतों, विशेष रूप से मक्खन के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें, माखन चोर या मक्खन चोर की स्नेही उपाधि दिलाई। उनके बचपन की कहानियां, जो उनके सखा और वृंदावन की गोपियों के साथ आकर्षक रोमांच और रोमांच से भरी है, चाहे वह राधा जी के संग प्रेम हो या रासलीला हो वह सभी में पूर्ण है, जो उनके जन्म का प्रतीक है। जैसे जैसे वे बड़े हुए, भगवान कृष्ण ने एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय नेता की भूमिका निभाई। कंश का वध करके अपने माता पिता और और अन्य लोगों को बचाया मुक्त किए। महाभारत के दौरान उनके कार्यों, विशेष रूप से कुरुक्षेत्र के महाकाव्य युद्ध में, उन्हें धर्म के आदर्श के रूप में स्थापित किया। उन्होंने अर्जुन के सारथी के रूप में कार्य किया जो अर्जुन ने चुना था, दुर्योधन ने कृष्ण जी के सेना को चुना और अर्जुन ने कृष्ण को, ताकि सारथी पूर्ण मुक्त हो अपने पथ पर अटल हो। गहन युद्ध के दौरान मार्गदर्शन और सहायता प्रदान की। युद्ध के दौरान अर्जुन उनके प्रवचन को भगवद गीता के रूप में अमर कर दिया गया है, जो एक पवित्र ग्रंथ है जो जीवन, कर्तव्य और आध्यात्मिकता की प्रकृति पर प्रकाश डालता है। गीता की शिक्षाएं परिणामों की आसक्ति के बिना अपने कर्तव्य को निभाने पर जोर देती हैं, निस्वार्थ कर्म की वकालत करती हैं। भगवान कृष्ण की शिक्षाएं कई प्रमुख सिद्धांतों में समाहित हैं जो आज भी लोगों के साथ गूंजती हैं। कर्मयोग आध्यात्मिक विकास के लिए निस्वार्थ कर्म का मार्ग पर केंद्रित है। भक्तियोग ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने ज्ञान योग को भी आध्यात्मिक दृष्टि से जोड़ा और ज्ञानयोग को भी बढ़ावा देने के कहा। धर्म धार्मिकता और नैतिक मूल्यों को बनाए रखना जीवन का मूल है। इन शिक्षाओं के माध्यम से, कृष्ण व्यक्तियों को संतुलित करते हैं बैलेंस करते हैं, आंतरिक शांति और सद्भाव पर जोर देते हैं। भगवान कृष्ण की विरासत धार्मिक सीमाओं से परे है। उनकी शिक्षाओं की कई तरह से व्याख्या की गई है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर लागू होने वाली बुद्धि प्रदान करती है। उनकी जीवन कहानी करुणा, विनम्रता और अखंडता जैसे आदर्शों को बढ़ावा देती है। जन्माष्टमी और होली जैसे त्यौहार उनके जीवन और शिक्षाओं को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं, लोगों को आनंद और भक्ति में एक साथ लाते हैं। उनका प्रभाव विभिन्न संस्कृतियों में काला, साहित्य, संगीत और नृत्य में देखा जा सकता है। भगवान कृष्ण का जीवन और शिक्षाएं दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। प्रेम, कर्तव्य और धार्मिकता के उनके संदेश एक पूर्ण और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। जब हम उनकी विरासत पर विचार करते हैं, तो हमें उनके कार्यों और शब्दों के माध्यम से साझा किए गए कालातीत ज्ञान की याद आती है।
भगवद गीता, 18 अध्याय 700 श्लोकों वाला धर्मग्रंथ है, जो भारतीय महाकाव्य महाभारत का एक हिस्सा है। इसमें राजकुमार अर्जुन और भगवान कृष्ण के बीच बातचीत शामिल है, जो उनके सारथी के रूप में कार्य करते हैं। उनके संवाद कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में होता है, यहां अर्जुन युद्ध ने लड़ने के बारे में संदेह और नैतिक दुविधा से भरा हुआ है। उनकी बातचीत के माध्यम से, कृष्ण गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक शिक्षाएं देते हैं, जिन्हें कृष्ण के गीता दर्शन के रूप में जाना जाता है। गीता के केंद्रीय विषय में से एक धर्म या कर्त्तव्य की अवधारणा है। कृष्ण परिणामों के प्रति आसक्ति के बिना अपने कर्तव्य को निभाने के महत्व पर जोर देते हैं। वह बताते हैं कि व्यक्तियों के अपने स्वधर्म (व्यक्तिगत कर्तव्य) के अनुसार कार्य करना चाहिए और अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटना चाहिए। यह शिक्षा लोगों को परिणामों की चिंता करने के बजाय अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे वैराग्य और भक्ति प्रेम की भावना को बढ़ावा मिलता है। कृष्ण कर्म योग की वकालत करते हैं, जो निस्वार्थ कर्म का मार्ग है। वे अर्जुन को बिना किसी पुरस्कार की अपेक्षा के धार्मिक कर्म करने की सलाह देते हैं। यान दृष्टिकोण इस विचार को दर्शाता है कि सच्ची पूर्णता किसी व्यक्ति के कार्यों को उच्च उद्देश्य या ईश्वरीय इच्छा के लिए समर्पित करने से आती है। व्यक्तिगत इच्छाओं को त्याग कर, व्यक्ति आध्यात्मिक मुक्ति और आंतरिक शांति प्राप्त कर सकता है। कर्तव्य और कर्म पर चर्चा करने के अलावा, कृष्ण ज्ञान और बुद्धि की प्रकृति पर चर्चा करते हैं। वे सांसारिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के बीच अंतर करते हैं, इस बात पर जोर देते हैं कि सच्चे ज्ञान में भौतिक शरीर से परे शाश्वत आत्मा को समझना उचित होगा और सार्थक भी। यान अहसास आत्म जागरूकता और ज्ञान की ओर ले जाता है, जिससे व्यक्ति को जन्म और मृत्यु के चक्र से परे जाने में मदद मिलती है। भक्ति कृष्ण की शिक्षाओं का एक महत्वपूर्ण पहलू है। एक बात को समझना होगा यहां कि ज्ञानयोग कर्मयोग भक्तियोग तीनों का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना है परमात्मा को प्राप्त करना है। लेकिन हम लोग कृष्ण को बस पकड़ लेते हैं ज्ञान को छोड़ देते हैं बस आंख बंद करके भक्ति करने लगते हैं फिर अंत या मृत्यु तक कुछ हाथ नहीं लगता है। कृष्ण उंगली दिखा रहे हैं कि सबका मालिक परमात्मा ऊपर है आकाश है लेकिन आप कृष्ण के उंगली पकड़ ले और कहें नहीं मुझे नहीं देखना है आकाश में बस आपको देखन है ये आपकी इच्छा आपकी जीवन है जो करना है करें लेकिन तीनों योग का उदेस्य परमात्मा को प्राप्त करना है खोज करना है। यहां सब परमात्मा है कोई सोया है कोई जगा हुआ कोई होश में है कोई मूर्छा। वे अर्जुन को ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास और भक्ति विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। भक्ति योग के माध्यम से, व्यक्ति ईश्वर के साथ गहरा संबंध बना सकते हैं, दिव्य प्रेम और कृपा का अनुभव कर सकते हैं। भक्ति का यह मार्ग जाति, पंथ या सामाजिक स्थिति से परे सभी के लिए सुलभ है।
कृष्ण (प्रकृति) और स्वतंत्र इच्छा (पुरुष) के बीच परस्पर संबंध की व्याख्या करते हैं, इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि जबकि मानव क्रियाएं उनकी प्रकृति से प्रभावित होती हैं, उनके पास अपनी प्रतिक्रियाएं चुनने की स्वतंत्रता होती है। यह समझ व्यक्तियों को अपने उच्च स्व के साथ सरेंखित सचेत विकल्प बनाकर अपने भाग्य को आकार देने के शक्ति प्रदान करती है। कृष्ण की शिक्षाओं का अंतिम लक्ष्य व्यक्तियों को सर्वोच्च सत्य या ब्रह्म का बोध कराने की दिशा में मार्गदर्शन करना है। वे अर्जुन को अपना सार्भभोमिक रूप दिखाते हैं, जो सभी जीवन की परस्पर संबद्धता को दर्शाता है। यह दृष्टि अर्जुन को भौतिक दुनिया की क्षणभंगुर प्रकृति को समझने और ब्रह्मांडीय व्यवस्था में अपनी भूमिका को अपनाने में मदद करता है। भगवान कृष्ण न केवल प्रेम और करुणा के प्रतीक हैं, बल्कि वे शाश्वत ज्ञान के स्रोत भी हैं। उनकी शिक्षाएं, संतुलित और पूर्ण जीवन जीने के बारे में गहन अंतर्दिष्टि प्रदान करती हैं। कृष्ण की शिक्षाओं में केंद्रीय विषयों में से एक धर्म या कर्तव्य की अवधारणा है। वे इस बात कर जोर देते हैं कि जीवन की भव्य योजना में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका होती है और अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से पूरा करना सर्वोपरी है। भगवद गीता का एक श्लोक इसे खुबसूरती से समेटता है, ” किसी और के जीवन की नकल करके पूर्णता के साथ जीने की तुलना में अपने भाग्य को अपूर्ण रूप से जीना बेहतर है। यह प्रामाणिकता और व्यक्तिगत जिम्मेदारी के महत्व को उजगार करता है। कृष्ण हमें परिणामों के आसक्ति में बिना अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। निस्वार्थ कर्म की वकालत करते हैं। यह सिद्धांत न केवल तनाव को कम करने में मदद करता है बल्कि आंतरिक शांति और संतुष्टि को भी बढ़ावा देता है। भगवान कृष्ण की एक गहन शिक्षा वैराग्य के बारे में है, जिसे अक्सर उदासीनता के रूप में गलत समझा जाता है। हालांकि, कृष्ण एक सकारात्मक वैराग्य की बात करते हैं जो व्यक्तियों को दुनिया से अभिभूत हुए बिना जुड़ने की अनुमति देता है। एक प्रसिद्ध श्लोक में कहा गया है, “आपको अपने निर्धारित कर्तव्यों को करने का अधिकार है, लेकिन आप अपने कार्यों के फल के हकदार नहीं हैं। यह हमें परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। वैराग्य का अभ्यास करके, व्यक्ति सफलता और असफलता दोनों में अपना धैर्य बनाए रख सकते हैं, जिससे अंततः एक अधिक संतुलित जीवन जी सकते हैं। यह शिक्षा आज के तेज़ तर्रार दुनिया में विशेष रूप से प्रासंगिक है जहां लोग अक्सर स्वयं को लगातार मांगों और अपेक्षाओं से तनावग्रस्त पाते हैं। प्रेम और भक्ति कृष्ण की शिक्षाओं के मूल में हैं। वे सलाह देते हैं कि सच्ची भक्ति उच्च शक्ति के प्रति समर्पण और सभी जीवित प्राणियों के साथ एकता की भावना विकसित करने के बारे में है। भगवद गीता के एक प्रसिद्ध श्लोक में कहा गया है, “अपना मन मुझ पर लगाओ, मेरे प्रति समर्पित रहो, मेरे लिए बलिदान करो, जो प्रेम और समर्पण के माध्यम से ईश्वर के साथ जुड़ने के बारे में है। भौतिक कृष्ण के बारे में नहीं है बल्कि आंतरिक और शून्यता के बारे में है। वे अपने बारे में नहीं कह रहे हैं बल्कि उस परम पूज्य परमात्मा के बारे में कह रहे हैं जो सबके भीतर विराजमान हैं जो पूर्ण है जो भौतिक और सूक्ष्म दोनों में ठहरे हुए हैं शून्य है, चैतन्य है। भक्ति और प्रेम के माध्यम से, व्यक्ति अहंकार से ऊपर उठ सकता है और ब्रह्मांड के सात एक गहरे संबध का अनुभव कर सकता है। कृष्ण की शिक्षाएं हमें याद दिलाती है कि बिना शर्त प्रेम और करुणा परिवर्तनकारी शक्तियां हैं जो व्यक्तियों और समुदायों दोनों को ठीक कर सकती हैं और उनका उत्थान कर सकती हैं। कृष्ण की बुद्धि ने जीवन में एक अपरिहार्य हिस्से के रूप में परिवर्तन को स्वीकार करना भी शामिल है। वे सिखाते हैं कि भौतिक दुनिया में सब कुछ क्षणभंगुर है, और इस नश्वरता को समझने से दुःख से मुक्ति मिल सकती है। एक श्लोक इस बात पर जोर देती है, ” आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है यह शाश्वत, अविनाशी है। यह शक्तिशाली संदेश हमें अस्थयी असफलताओं से परे देखने और जीवन को व्यापक दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रोत्साहित करता है। बदलाव को शालीनता से स्वीकार करके, हम लचीलापन और अनुकूलनशीलता विकसित का सकते हैं, जो जीवन को चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक गुण हैं। कृष्ण की शिक्षाएं आंतरिक शांति बनाए रखते हुए बदलावों को शालीनता से प्रबंधित करने का रोडमैप प्रदान करती हैं। भगवान कृष्ण के श्लोक कालातीत ज्ञान प्रदान करते हैं जो हमें अधिक अस्तित्व की ओर ले जाते हैं। इन शिक्षाओं को अपने दैनिक जीवन में शामिल करके, हम उद्देश्य, संतुलन और शांति के भावना विकसित कर सकते हैं। चाहे वह कर्तव्य को अपनाने, वैराग्य का अभ्यास करने, भक्ति का पोषण करने या परिवर्तन को स्वीकार करने के माध्यम से हो। कृष्ण की अंतर्दृष्टि आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। उनकी शिक्षा जीवन जीने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण को प्रेरित करती हैं, जो सांसारिक जिम्मेदारियों को आध्यात्मिक विकास के साथ सामंजस्य स्थापित करती है। हम बस कृष्ण से अपना अर्थ निकलने में लग जाते हैं, बिना पूर्ण जाने तोता के तरह दोहराने लगते हैं। आप बस कल्पना करना चाहते हैं भावना के साथ बस जुड़ना चाहते हैं या उनके कुछ विचार को बस तोता के तरह दोहराने का काम कर रहे हैं तो आप स्वयं को बस मूर्ख बना रहे हैं। अगर आप ईश्वर को कहीं भौगोलिक स्थान या भौतिक पर दृष्टि दे कर खोज रहे हैं तो आप बस भावना में जी रहे हैं विचार से भी एक कदम नीचे भाव जायेगा तो विचार आएगा विचार शून्य होने पर ही परमात्मा का दर्शन होगा क्योंकि वही विचार कर रहे हैं वही कल्पना कर रहे हैं वही मान रहे हैं वही जान रहे हैं फिर भी धोका में जीते हैं कितनी मूर्खता बातें है ये सब। जब हमारे पास साधन मौजूद हैं फिर हम क्यों माने क्यों न जान कर स्थिर हो जाए परमात्मा हो जाए शून्य हो जाए। कृष्ण जी को सभी पत्नियों से प्रेम हो या बलराम जी हो सुदामा जी हो या अर्जुन सभी में प्रेम पूर्ण दिखाई देता है। चाहे वह बाल सखा के साथ खेलना हो या गोपियों को परेशान करना हो या गौ सेवा हो या युद्ध करना हो सभी में उन्हें महारथ हासिल था। वो अपना जीवन पूर्ण जीए सभी के लिए जिए।
हम सब उनके विचारों को जान कर परे उठ सकते हैं तभी हम जीवन में पूर्ण स्पष्टता ला सकते हैं और जीवन में संतुष्ट और पूर्ण आनंदित भी हो सकते हैं।
इतने ध्यान और प्रेम से सुनने और पढ़ने के किए आभार, प्रणाम।
धन्यवाद,
रविकेश झा,
🙏❤️,