मुझ पर अपनी बात न थोपो

मुझ पर अपनी बात न थोपो।
दिल है मेरा भी ,ऐसा तो सोचो।
औरत हूं तो क्या ,सब सह लूं ?
खुल कर क्यों ,बात न कह लूं?
क्यों मेरे लिए ही हैं सारे ये बंधन?
नाचती रहूं मैं क्यों कठपुतली बन ?
बोलो कब बदलेगी सोच तुम्हारी?,
नारी को क्यों समझते हो बेचारी?
पत्थर की नारी को तू पूजे जा जा।
हांड मांस की मिले सोचे लूं मैं खा।
सुरिंदर कौर