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11 Apr 2025 · 1 min read

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर

होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।
उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर ।।

भाग्य भरोसे कब भला, करवट ले तकदीर ।
बिना करम के जिंदगी, जैसे लगे फकीर ।।

बिना कर्म इंसान की, बदली कब तकदीर ।
श्रम बदले संसार में, जीने की तस्वीर ।।

चाहो जो संसार में, मन वांछित परिणाम ।
नजर निशाने पर करे, संभव हर संधान ।।

भाग्य भरोसे कब हुआ, जीवन का उद्धार ।
चाबी श्रम की खोलती, किस्मत का हर द्वार ।।

बिछा हुआ हर हाथ में, रेखाओं का जाल ।
किस रेखा में क्या छुपा, काल न जाने हाल ।।

हर कोई चाहे बस मिले, बिना श्रांति परिणाम ।
रचें लकीरें हाथ की, स्वर्णिम सा बस धाम ।।

सुशील सरना 11-4-25

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