*बारात चली*

बारात चली
सज गया दूल्हा सजे बाराती,
सज गई कार रथ घोड़े हाथी।
आगे-आगे दूल्हा जाता,
पीछे पीछे चले बराती।
खुशी का माहौल दिखे भारी,
ठुमका लगाते सब नर-नारी।
दोस्त नाचें खुशी मनाते,
दूल्हे को भी साथ नचाते।
भर गईं बस भर गईं कारें,
देख रहे लोग झांँक दीवारें।
दुल्हन की थी आस भारी,
आज आ गई इसकी बारी।
उसका राजा दूल्हा आएगा,
संग उसे ले जाएगा।
सोच रही दुल्हन बेचारी,
बारात द्वार पर आ गई सारी।
स्वागत की थी फुल तैयारी,
आगे दूल्हा पीछे बारात सारी।
सभी ने नाश्ता खाना खाया,
खाना सब लोगों को भाया।
बारात चढ़ी सब झूमे गाएंँ,
कुछ छिछोरे आंँख मिलाएँ।
मंडप की जब बारी आयी,
दुल्हन दी सबको दिखाई।
वरमाला का समय आया,
यह क्षण सब लोगों को भाया।
आई फिर फेरों की बारी,
लौटने की हो गई तैयारी।
शहनाई बजी आंँसू आए,
विदाई का पल न सबको भाये।
आज मांँ-बाप से हुई पराई,
सज-धज कर ससुराल में आयी।