रंगों का प्रभाव
हमारे देश में रंगों का पर्व होली का अपना अलग महत्व है। यही एक ऐसा पर्व है जिसके आगमन की प्रतीक्षा ना सिर्फ युवाओं को बल्कि बच्चों को भी रहती है क्योंकि होली के विभिन्न सुंदर रंग रिश्तों में आत्मीयता का रंग तो भरते ही है साथ ही रोगों को भी दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। प्रतिदिन सूर्य से हमें जो आरोग्यता बल उत्साह, उल्लास प्राप्त होता है वह इन्हीं रंगों का कमाल होता है। रंगों के महत्व और लाभ को हमारे पूर्वजों ने काफी पूर्व ही जान लिया था तभी तो होली को रंगों का पर्व के रूप में मनाने की परिपाटि का शुभारंभ कराया। बसंत पंचमी से होली तक ब्रज में 41 दिन की होली मनाए जाने का कारण भी यही है जो आज भी जारी है इसके पीछे मकसद यह था कि, ऋतु परिवर्तन के फलस्वरूप शीत ऋतु में हमारी त्वचा विभिन्न प्रकार के कीटाणु मैल आदि का शिकार हो जाती है जो आसानी से मुक्त नहीं हो पाती किंतु जब त्वचा पर रंग का लेपन होता है और बार-बार होता है तो त्वचा पर कीटाणु मैल आदि का संक्रमण खतम होने लगता है। साधु सन्यासी द्वारा शरीर में भभूत लगाने या मिट्टी चिकित्सा के दौरान मिट्टी लेपन में भी यही कारण है जब यह जल से धोया जाता है तो त्वचा पूर्णतः साफ कीटाणु मैल रहित होकर कान्तिमय हो जाती है। भारत का ज्योतिष विज्ञान भी रंगों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विस्तृत व्याख्या पहले ही कर चुका है। ज्योतिष विज्ञान तो यह तक कह चुका है कि, यही रंग ग्रहों नक्षत्रों पर अपना गहरा प्रभाव डालकर मनुष्य के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन कर सकते हैं। ग्रहों नक्षत्र के हिसाब से अलग-अलग दिन राशि अनुसार अलग-अलग रंग के वस्त्र पहनने की सलाह ज्योतिष शास्त्र देता रहा है और इसके चमत्कारिक प्रभाव से हम आज भी परिचित है। रंगों में गजब का नशा होता है जो सिर्फ देखने से ही पता लगता है। हमने यह महसूस किया कि जिस प्रकार शब्द मंत्र प्रभाव डालते हैं उसी प्रकार रंग भी प्रभाव डालते हैं। रंग का जब शरीर में लेपन होता है तो एक प्रकार से नशा मदहोशी का अनुभव महसूस होता है जो अवसाद ग्रस्त, बीमार, अनिद्रा के शिकार लोगों के लिए लाभदायक होता है। सही मायने में देखा जाए तो रंग दवा और दारू दोनों है मगर शर्त ये है कि, विवेक से उपयोग किया जाए। रंग हमारे जीवन में जहां संचार पैदा करते हैं वहीं अपने प्रभाव से हमारा उपचार भी करते हैं। बदलते परिवेश में अब रंग भले ही केमिकल युक्त चटख बनने लगे हो लेकिन आपसी रिश्तों का रंग बिल्कुल फीका हो गया है जबकि पहले रंग भले ही फीके होते थे किंतु जब लगते थे तो रिश्तों का रंग चटख होता था।
• विशाल शुक्ल