आंसू बनकर बहते हम

आंसू बनकर बहते हम
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खोये–खोये रहते हम,
हर दम रोते रहते हम।
भीगी–भीगी पलकें हैं,
दरिया गोते खाते हम।
तेरी जां की खातिर यूँ,
सीने गोली खाते हम।
फूलों की खुशबू जैसे,
तन–मन में बसते हम।
मनसीरत के नयनों में,
आंसू बनकर बहते हम।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)