गजल
मुहब्बत की जगह घर है मकानो में नहीं मिलता
जमीन पर जो सुकूं है आसमानों में नहीं मिलता।
यह रिश्ते नाते बनने में जमाने लगा ही जाते हैं
यह सब चीजे किसी के कारखानों में नहीं मिलता।
ये छप्पन भोग से मन तृप्त कब होता है भला किसका
खिला कर जब मधुर वाणी जुबानों में नहीं मिलता।
खुदा को पाना है तो मन को निर्मल रखना काफी है
ये हीरे और सोने की खदानों में नहीं मिलता
जरा सी बात पर मुरझाना कमजोरी है नादानों
यूं हिम्मत पस्त हो जाना जवानों में नहीं मिलता
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर