समझे नहीं संदेश

समझे नहीं संदेश✍️🌹
मेरे देश की मिट्टी की खुशबू सोंधी सोंधी आती है।
भूले हो तुम जिन राहों को वो राह तुम्हें बुलाती है।
पाक जमी हिन्द की खुदा ने आदम को यहां उतारा।
ऋषि मुनियों की धरती ये जो तप की आग जलाती है।।
मनु, श्रद्धा या आदम, हव्वा की हम सब सन्तानें हैं।
एक ही जात के बच्चे हैं हम,जो मानवता कहलाती है।।
चीर के देखो जिगर हमारा लहू तुम्हें जो मिलता है।
अलग संस्कृति वतन की , अदब एक सिखाती है।।
मजहब कितने भी हो इसमें सार सभी के एक हैं।
एक ही सफ में हों शामिल ये आईन हमें बताती है।।
** शगुफ्ता रहमान ‘सोना’