*जय भारत (राधेश्यामी छंद)*

जय भारत (राधेश्यामी छंद)
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1)
यह धर्म हमारा है भारत, भारत-भू अपनी माता है।
भारत माता से युग-युग से, जन्मों-जन्मों का नाता है।।
2)
भारत के ग्रंथ वेद हमको, अति श्रेष्ठ बनाते आए हैं।
शुचि ज्ञान अनूठा ऋषियों का, शुभ पृष्ठ इन्हीं के लाए हैं।।
3)
जब दुनिया लिखना सीख रही, ऋग्वेद-ऋचा हम गाते थे।
हम निराकार का तत्व-ज्ञान, हम ध्यान-योग बतलाते थे।।
4)
हमने ही थे उपनिषद लिखे, यह गहरा ज्ञान हमारा था।
यह धर्म हमारा भारत का, दुनिया में कभी न हारा था।।
5)
यह पावन धरती भारत की, श्री कृष्ण जहॉं अवतारी थे।
गीता का ज्ञान दिया हमने, सब जन जग के आभारी थे।।
6)
यह रामराज्य था त्रेता में, आदर्श धरा पर गढ़ डाला।
यह राज्य भरत का अद्भुत था, दो चरण पादुकाओं वाला।।
7)
कवि वाल्मीकि की रामायण, सन्मार्ग हमें सिखलाती है।
यह रामचरितमानस तुलसी, रस कथा भक्ति बतलाती है।।
8)
हम सदा-सदा से पेड़ों को, हर समय पूजते आए हैं।
तुलसी के पौधे घर-घर में, हमने ही सदा लगाए हैं।।
9)
पीपल का पेड़ पता हमको, जीवन का सदा प्रदाता है।
इसलिए हमारा धर्म हमें, पीपल-रक्षा सिखलाता है।।
10)
हमने पेड़ों से प्यार किया, धागे श्रद्धा से लाए हैं।
जो पेड़ बढ़े हैं भारत में, धागे हमसे बॅंधवाए हैं।।
11)
नदियों के तट पर भारत में, हमने संस्कृति का लेख लिखा।
अपना ही यत्न भगीरथ था, गंगा का जब अवतरण दिखा।।
12)
यह धर्म हमारा भारत का, नदियों के तट पर खेला है।
यह धर्म सनातन दिव्य भव्य, एकात्म कुंभ का मेला है।।
13)
हम उस पर्वत के बेटे हैं, शिव जिस पर ध्यान लगाते हैं।
हम उस दुर्गा के पूजक हैं, राक्षस जिनसे थर्राते हैं।।
14)
हम दो हाथों में शंख-पुष्प, हम अभय बॉंटने वाले हैं।
हम उनके लिए गदाधारी, जो राक्षस दिल के काले हैं।।
15)
अपना यह धर्म हमेशा से, भारत की भाषा बोल रहा।
यह धर्म हमारा भारत की, भाषा के पन्ने खोल रहा।।
16)
भारत की हवा अन्न जल से, यह भारत धर्म सॅंवारा है।
भारत के धर्म सनातन का, ‘जय भारत’ केवल नारा है।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451