बहुत उदासी छा गई, बीच में अंधेरा भी तो आ गया,

बहुत उदासी छा गई, बीच में अंधेरा भी तो आ गया,
चराग़ जल के बुझ गए,ये हवा कैसी चल गई।
बहारों के मौसम में, सूखे पत्तों की चुभन कहाँ से आ गई,
शायद किसी दिलजले की, आह ज़ोरों से निकल गई।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”