ग़ज़ल…03
ज़माने से ज़ुदा होते हमारे काम हैं यारों
तभी तो हम हुये प्रीतम यहाँ गुलफ़ाम हैं यारों//1
हुनर हर हाल में चमके किसी पल साल में चमके
क़ला के ख़ूब इस संसार में तो दाम हैं यारों//2
खिलेगा धूप जैसा जो रहेगा छाँव जैसा वो
यहाँ दिन-रात जैसे नूर के सब नाम हैं यारों//3
चुरा इज़्ज़त किसी की हर यहाँ रोता नज़र आया
तभी बदनाम छूकर भी लबों को ज़ाम हैं यारों//4
मुझे तुमसे तुझे मुझसे मुहब्बत हो गई हमदम
हमारे इश्क़ के चर्चे तभी तो आम हैं यारों//5
किसी भी दर्द को समझे लिए चुटकी मिटाए जो
वही तो सच कहूँ हँसके ख़ुदा या राम हैं यारों//6
भला कहकर बुराई को बदल सकता नहीं कोई
हँसे जब सुब्ह तो ‘प्रीतम’ हँसें तब शाम हैं यारों//7
आर. एस. ‘प्रीतम’