न उम्मीद कोई बाकी है ,

न उम्मीद कोई बाकी है ,
न आस ही कोई फाजिल है।
कौन उसे बचाए डूब जाने से,
साकी ही जिसका कातिल है।
कश्ती खे रहा हूँ ये जानकर भी,
किनारा मुझे न हासिल है।
मेरी खुशियों की रुस्वाई में,
कोई अपना जरूर शामिल है।
श्याम सांवरा…
न उम्मीद कोई बाकी है ,
न आस ही कोई फाजिल है।
कौन उसे बचाए डूब जाने से,
साकी ही जिसका कातिल है।
कश्ती खे रहा हूँ ये जानकर भी,
किनारा मुझे न हासिल है।
मेरी खुशियों की रुस्वाई में,
कोई अपना जरूर शामिल है।
श्याम सांवरा…