रात्रि

रात्रि आई चुपके से,
ओढ़ तिमिर की चादर,
चाँद सितारे संग लिए,
ले आई शीतल आँचल।
सन्नाटे की गहराई में,
धीमे-धीमे सपने बोले,
शहर की भागमभाग से दूर,
मन के दीप भी झूमें-डोले।
कभी उदासी में डूबी लगे,
कभी प्रेम की बात सुनाए,
रहस्य भरी ये रात सुहानी,
अंतस की गहराई को जगाए।
सन्नाटा भी संगिनी बनकर,
धीमे-धीमे लोरी गाए,
रात्रि संग जो बैठ गया,
अपनी कहानियाँ लिख जाए।