यात्रा बेटी की
///यात्रा बेटी की///
परम शक्ति की निसृत अमृत बिंदु,
गर्भ में आती है बेटी।
कोख में आने से लेकर,
माता-पिता को उत्साह से भर देती है बेटी।।
जन्म से मृत्यु पर्यंत,
कितने सुख दुख का संघात लिए।
सींचती है बाग बगिया ,
दुनिया को राह दिखाती बेटी।।
झिलमिलाते तारों की सी,
टकटकी बांधे देखती अंबर को।
भविष्य के कितने संजोती सपने,
संवारती स्व को स्वजनों को निरंतर बेटी।।
वह हंसती तो झरते फूल,
वह रोती तो गिरते मोती।
उसका चहकना सितारों भरा अंबर,
तम भरी रजनी में उजाला फैलाती बेटी।।
उसका जीवन खुली गीता की तरह,
जीवन का सार समझाती है।
ज्ञान भंडार भरने में सक्षम,
पाकर स्नेह सारना प्रताड़ना कितना इठलाती अकुलाती है बेटी।।
टीका माथे का शीतल चंदन सा,
तोषवाही शिव शक्ति के वंदन सा।
जगती में जीवन उसका मोह-माया भरा,
नंद नंदन सी विश्व चेतन जगाती है बेटी।।
स्वर्ग और नरक की विभाजक रेखा सी,
एक ओर उत्कर्ष और हर्ष का आनंद।
कभी दावानल सी रौद्र रूपा,
रौरव की पीड़ा का एहसास दिलाती है बेटी।।
आत्म सम्मान में जौहर करने वाली,
राष्ट्र संस्कृति की प्रतिकृति।
पुनः पुनः मर्दन करती कलुषों का,
जीवन संजीवनी भरी पीयूष धार है बेटी।।
जगत के विषकुंभ की पीड़ा को,
वंचना भरी रुदन से क्रंदन से सहती।
उत्तप्त ज्वाल में जीवित जलकर भी,
अपमार्ग की शरण नहीं लेती है बेटी।।
इस दुनिया में जग के षडयंत्रों से बेखबर,
बेरहम दुनिया में बेजुबान यात्री।
जीवन में मानवता की कल्याणकरी,
अपना सर्वस्व निछावर कर देती है बेटी।।
मानवता की यात्रा में पाथेय बन,
शक्ति चेतना की संचार कर्त्री।
स्वर्गोपम पुण्य धरा धाम सी,
श्रीधरी आनंद निलय श्रेयस्करी सुखसार है बेटी।।
परम ब्रह्म से झरी प्रेमभरी जीवन बिंदु,
शिव शक्ति के शिश ठहरी।
अमोघ वर दे सींचती धरा धाम को,
अमिय सागर की स्वर लहरी।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)