****अनगर्जियाँ****

****अनगर्जियाँ****
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1
खुद को संवारा,
गैरों को बिगाड़ा,
ले डूबी हैं तुझे तेरी,
खुद की ही खुदगर्जियाँ।
2
किसी की नहीं मानी,
सदा ही की मनमानी,
बिगड़े हाल की गवाह है,
मन से की वो मनमर्जियाँ।
3
शौहरत सिमट गई,
धन-दौलत खिसक गई,
हालात बयां कर रही हैं,
चेहरे की खामोशियाँ।
4
अय्याशी ने डूबोया,
मयकशी में खोया,
सामने अब आ रहीं है,
तेरी सारी मदहोशियाँ।
5
बेगैरत सी आदतों नै,
घटी हुई वारदातों ने,
मनसीरत दिख रही हैं,
अंगड़ाई लेती अनगर्जियाँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)