दोहा त्रयी. . . . . प्यार
दोहा त्रयी. . . . . प्यार
संकेतों के हो गए, जब पूरे दस्तूर ।
लाज लजीली हो गई, बांहों में मजबूर ।।
साँसों की सरगोशियाँ, तन्हाई का शोर ।
ऐसे में अच्छी नहीं, दिल को लगती भोर ।।
दौर समर्पण का चला, मद में तन थे चूर ।
ऐसे में कैसे भला, तन से तन हों दूर ।।
सुशील सरना / 2-4-25