शीर्षक – बन्धन..…. मन

शीर्षक – बन्धन…. मन
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बन्धन तो जीवन भी होता है।
मन के साथ हम तुम होते हैं।
हम सभी जन्म के बन्धन मानते हैं।
सच और सोच हमारी रहतीं हैं।
जन्म और मरण का बन्धन होता हैं।
बस हम मोह माया संसारिक रखते हैं।
धन संपत्ति और अहम का बन्धन हैं।
मन और सोच हमारी अपनी होती हैं।
अजनबी भी बन्धन को निभा जाते हैं।
बस हमारे व्यवहार विचार भी रहते हैं।
बन्धन एक मन और उम्मीद होती हैं।
हां, सच तो हमारी सोच समझ रहतीं हैं।
जिंदगी चाहत और कुदरत कहतीं हैं।
बन्धन ही तो जीवन की राह होती हैं।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र