#ग़ज़ल

#ग़ज़ल
■ इंतज़ार की हद है ना…?
[प्रणय प्रभात]
◆ बेशुमार की हद है ना?
हर विचार की हद है ना??
◆ पथराई ऑंखें दर पे।
इंतज़ार की हद है ना??
◆ ये सरहद वो अनहद है।
आर-पार की हद है ना??
◆ सहन की हो या दुनिया की।
हर दिवार की हद है ना??
◆ दिल में कितना दफ़न करे?
राज़दार की हद है ना??
◆ एक रोज़ रुख़्सत होगी।
इस बहार की हद है ना??
◆ कितनी बार इसे जोड़ूँ?
एतबार की हद है ना??
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-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज (मप्र)